
क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया के दूसरे दिन महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।
सत्र का विषय: हादसा जिसने देहरादून को हिला दिया (ONGC हादसा)।
मॉडरेटर: वरिष्ठ पत्रकार सतीश शर्मा।
पैनलिस्ट: एसएसपी देहरादून अजय सिंह और सामाजिक कार्यकर्ता अनुप नौटियाल।
इस सत्र में 12 नवंबर को हुए ONGC हादसे पर चर्चा हुई, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हादसे में छह युवाओं की मृत्यु ने समाज को गहराई से प्रभावित किया। पैनलिस्टों ने इस दुर्घटना के विभिन्न पहलुओं, कारणों और इसके रोकथाम के उपायों पर विचार-विमर्श किया।
मुख्य बिंदु:
एसएसपी अजय सिंह के विचार
1. दुर्घटना का विवरण:
12 नवंबर को रात 1:30 बजे कंट्रोल रूम को जबरदस्त टक्कर की सूचना मिली।
घटनास्थल का दृश्य इतना दर्दनाक था कि इसे देखकर रातभर नींद नहीं आई। 20-24 वर्ष की उम्र के युवा नई गाड़ी लेकर तेज गति से चल रहे थे। सीसीटीवी फुटेज में देखा गया कि ट्रक सामान्य गति में था, लेकिन कार की गति घटना स्थल से 500 मीटर पहले अचानक बढ़ गई। ट्रक के अगले हिस्से में पानी की बोतल फंसी थी, जो संभावित कारण हो सकता है। ट्रक की गति 25 थी, जबकि कार 145 किमी/घंटा की रफ्तार पर थी।
2. रोड सेफ्टी के सुझाव:
यातायात नियमों के प्रति लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता।
“एक चालान आपकी जान बचा सकता है” जैसे संदेश फैलाए जाने चाहिए। रात और दिन में पूर्ण चेकिंग की जाएगी। सड़क सुरक्षा समिति की नियमित बैठकें होनी चाहिए। फिल्मों और सोशल मीडिया पर तेज गति को महिमामंडित करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जानी चाहिए। 75% सड़क दुर्घटनाएं पैदल यात्रियों और दोपहिया वाहनों से जुड़ी होती हैं। पुलिस और सभी एजेंसियों को सख्ती से प्रवर्तन पर काम करना होगा।
अनुप नौटियाल के विचार
1. सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े:
11,000 मौतें और 15,000 लोग घायल हुए।
उत्तराखंड में हर 8 घंटे में एक मौत होती है।
दुर्घटना गंभीरता दर (Accident Severity Rate) 60-65% है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है।
हर दिन दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है।
2. सुझाव और मांगें:
4E मॉडल अपनाया जाए:
1. Engineering: सड़क निर्माण में गुणवत्ता और सुरक्षा उपायों का ध्यान रखा जाए।
2. Emergency Care: दुर्घटनाओं के बाद त्वरित आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं।
3. Enforcement: यातायात नियमों का कड़ाई से पालन करवाया जाए।
4. Education: सड़क सुरक्षा और वाहन चालन के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
तीन प्रमुख मांगें:
1. सड़क सुरक्षा परिषद (Road Safety Council) की बैठक 15 दिनों के भीतर हो।
2. 2025 तक सड़क दुर्घटनाओं पर श्वेत पत्र (White Paper) जारी किया जाए।
3. “सुरक्षित उत्तराखंड अभियान” पूरे राज्य में चलाया जाए।
3. अन्य मुद्दे:
बालावाला और बल्लीवाला हाईवे को खतरनाक बताया और कहा कि अगर इंजीनियरिंग सही होती तो accident नहीं होती। पर्यटन के कारण बाहरी वाहनों की संख्या बढ़ रही है, बच्चों और युवाओं को यातायात नियमों की शिक्षा देने की आवश्यकता। हेलमेट और “ड्रिंक एंड ड्राइव” के खिलाफ सख्ती की जाए।
1. पूर्व डीजीपी अशोक कुमार के सुझाव:
सड़क दुर्घटनाओं के लिए सभी जिम्मेदार हैं; केवल पुलिस को दोष देना सही नहीं। सड़कें चौड़ी नहीं हैं, लेकिन वाहन बड़े और तेज हो रहे हैं। अभिभावकों और शिक्षकों को बच्चों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करना चाहिए। लाइसेंस प्रक्रिया को सख्त बनाया जाए। फिल्मों और सोशल मीडिया पर तेज गति का महिमामंडन गलत है।
2. अन्य सुझाव:
फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने लाइसेंस प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए और कहा कि इसे सख्त किया जाए। सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए रात के समय यातायात नियमों का सख्ती से पालन कराया जाए।
निष्कर्ष: सत्र में पैनलिस्टों ने माना कि सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। सड़क सुरक्षा को लेकर जागरूकता, प्रवर्तन, और शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण कदम हैं। “सुरक्षित उत्तराखंड अभियान” जैसी पहल पूरे हिमालयी क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
विषय: “मैडम कमिश्नर: एक भारतीय पुलिस प्रमुख का असाधारण जीवन”।
मुख्य वक्ता: आईपीएस मीरन चड्ढा बोरवणकर।
मॉडरेटर: सुनीता विजय।
प्रस्तावना
इस सत्र में आईपीएस मीरन चड्ढा बोरवणकर ने अपनी पुस्तक “मैडम कमिश्नर” और भारतीय पुलिस में अपने अनुभवों पर चर्चा की। उन्होंने महिलाओं की भागीदारी, पुलिस सुधार, और पुलिसिंग की वर्तमान चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
प्रमुख चर्चा बिंदु
महिला पुलिस की भूमिका और चुनौतियाँ
1. महिलाओं की भागीदारी: मीरन बोरवणकर ने कहा कि वर्तमान में पुलिस में केवल 12% महिलाएँ हैं, और यह संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। महिला पुलिस अधिक संवेदनशील होती हैं और जनता के साथ बेहतर संवाद कर सकती हैं। पुलिस थानों में महिलाओं की संख्या बढ़ाने से महिलाओं के लिए पुलिसिंग अधिक सुलभ और भरोसेमंद बनेगी।
2. समाज की स्वीकार्यता: उन्होंने कहा, “आज 2025 का समय अलग है, और महिलाओं को पुलिसिंग में नेतृत्व करते देखना बहुत स्वागत योग्य है। “मीरन ने यह भी बताया कि नागरिक आमतौर पर महिला पुलिस अधिकारियों का समर्थन करते हैं।
3. प्रशिक्षण और संतुलन: उन्होंने पुलिस प्रशिक्षण अकादमी की तारीफ करते हुए कहा कि भारतीय पुलिस अधिकारी दुनिया में सबसे बेहतर हैं। मोबाइल और साइबर अपराध के बढ़ते खतरे पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपने आसपास के वातावरण के प्रति जागरूक रहना होगा।
“हमें जाँच करने दें” (Leave us alone when we investigate). मीरन बोरवणकर ने पुलिस जांच में हस्तक्षेप के मुद्दे पर कहा, “पुलिस को स्वतंत्र रूप से अपना काम करने देना चाहिए।” उन्होंने बताया कि कैसे साइबर अपराधी व्यक्तिगत जानकारी का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं और नागरिकों को अपनी जानकारी साझा करने में सावधानी बरतनी चाहिए
मार्शल रेप कानून पर विचार
जब उनसे Martial rape कानून के मुद्दे पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा: “झूठे मामलों की संभावना बढ़ सकती है, लेकिन मैं कानून का समर्थन करती हूँ। “पुलिस को इस तरह के मामलों में संतुलित और निष्पक्ष रहना चाहिए।
पुलिसिंग पलिसिंग प्रणाली: कमीशनरेट बनाम नॉन-कमीशनरेट सिस्टम, मीरन ने मुंबई और महाराष्ट्र में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कमीशनरेट सिस्टम बेहतर है। नॉन-कमीशनरेट सिस्टम में डुअल चार्ज का बोझ होता है, जिससे कामकाज में रुकावट आती है। उन्होंने कहा कि बेहतर संचार और भाषा पर काम करने की आवश्यकता है।
महिला आरक्षण और सुधार :डीएसपी स्तर तक 30-33% आरक्षण की जरूरत है। महिलाओं के लिए पुलिस सेवा को और आकर्षक बनाने के लिए काम किया जाना चाहिए।
सम्मान और निष्कर्ष: पूर्व डीजीपी अशोक कुमार ने मीरन चड्ढा बोरवणकर को उनके अनुभव साझा करने और सत्र में उपस्थित होने के लिए सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के विचार और अनुभव पुलिस प्रणाली में सुधार और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में सहायक होंगे। मीरन ने अपनी पुस्तक “मैडम कमिश्नर” को एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति बताया और इसे पढ़ने की सलाह दी।